भारत सदियों से कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिए जल प्रबंधन एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। देश में पानी की सीमित उपलब्धता और असमान मानसून वितरण के कारण सिंचाई की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। ऐसे में लघु सिंचाई परियोजनाएँ किसानों तक सीधे लाभ पहुँचाने का एक तेज़ और प्रभावी माध्यम बनती हैं। इन परियोजनाओं की लागत और निर्माण अवधि कम होती है तथा किसानों को तुरंत लाभ मिलता है।
लघु सिंचाई क्षेत्र का प्रबंधन
भारत सरकार में लघु सिंचाई क्षेत्र का प्रबंधन विभिन्न मंत्रालयों जैसे –
- जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग,
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय,
- ग्रामीण विकास मंत्रालय,
- जनजातीय मामलों के मंत्रालय
द्वारा किया जाता है। राज्य स्तर पर भी जल संसाधन, कृषि और ग्रामीण विकास विभाग इस कार्य की निगरानी करते हैं।
लघु सिंचाई कार्यों की गणना की आवश्यकता
राज्यों में लघु सिंचाई कार्यों की जिम्मेदारी किसी एक विभाग तक सीमित नहीं है। कई जगह बड़े पैमाने पर निजी निर्माण भी हो रहे हैं। ऐसे में इन कार्यों की सटीक जानकारी और निगरानी कठिन हो जाती है।
इसी चुनौती को देखते हुए 1970 में योजना आयोग ने लघु सिंचाई स्रोतों की गणना की सिफारिश की थी। राष्ट्रीय कृषि आयोग ने भी हर पाँच साल में इनकी गणना करने पर बल दिया।
सिंचाई गणना योजना
इस दिशा में 1987-88 में केंद्र सरकार ने लघु सिंचाई सांख्यिकी का युक्तिकरण (RMIS) योजना शुरू की। बाद में इसे जल संसाधन सूचना प्रणाली (WRIS) में जोड़ा गया और 2017-18 से इसका नाम बदलकर सिंचाई गणना योजना कर दिया गया।
राज्यों में डेटा संग्रह और संकलन के लिए एक नोडल विभाग की पहचान की जाती है। इसमें तकनीकी सहयोग के लिए सांख्यिकी प्रकोष्ठ और PMU (Project Monitoring Unit) भी बनाए जाते हैं।
योजना के प्रमुख उद्देश्य
- जल उपयोग दक्षता और नीति निर्माण हेतु विश्वसनीय डेटाबेस तैयार करना।
- ग्राम स्तर तक बेंचमार्क डेटा उपलब्ध कराना।
- सर्वेक्षणों के लिए तकनीकी ढाँचा उपलब्ध कराना।
- प्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं का राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना।
प्रमुख गतिविधियाँ
सिंचाई गणना के अंतर्गत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लघु सिंचाई अवसंरचनाओं की गिनती की जाती है। इसमें शामिल हैं –
- भूमिगत जल और सतही जल योजनाएँ,
- कुएँ, नलकूप, ट्यूबवेल, सतही प्रवाह व पंप सेट,
- ऊर्जा के स्रोत, स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसी तकनीकें,
- सौर पंप और पवन चक्की जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत।
अब तक छह सिंचाई गणनाएँ पूरी हो चुकी हैं और सातवीं में जल निकायों की गणना को भी जोड़ा गया है।
जल निकायों की अलग गणना
संसदीय समिति ने जल निकायों की मरम्मत और पुनरुद्धार से जुड़े मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया। समिति ने सिफारिश की कि जल निकायों का अलग से आकलन होना चाहिए। इसी आधार पर छठी लघु सिंचाई गणना के साथ ही पहली जल निकाय गणना भी की गई। इसमें जल निकायों के आकार, स्थिति, उपयोग, भंडारण क्षमता और अतिक्रमण की स्थिति जैसी जानकारियाँ जुटाई गईं।
तकनीकी नवाचार
नवीनतम गणनाओं में GIS आधारित मोबाइल ऐप का उपयोग किया जा रहा है। इससे न केवल वास्तविक समय में डेटा संग्रह संभव हो रहा है बल्कि जल निकायों और सिंचाई योजनाओं की फोटो रिकॉर्डिंग भी की जा रही है।
निष्कर्ष
सिंचाई गणना योजना भारत में जल संसाधन प्रबंधन की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह न केवल किसानों को समय पर और प्रभावी सिंचाई उपलब्ध कराने में सहायक है बल्कि जल संरक्षण, नीति निर्माण और भविष्य की योजनाओं को भी मज़बूती प्रदान करती है।