जल ही जीवन का आधार है। यह कथन केवल कहने भर का नहीं, बल्कि शाश्वत सत्य है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर मौजूद समस्त जीव-जंतु, वनस्पतियाँ, सूक्ष्म जीव, पशु-पक्षी, सभी के लिए जल अत्यावश्यक तत्व है। यह प्रकृति का एक अमूल्य उपहार है, जिसे नदियों, झीलों, तालाबों, नालों, झरनों, भूमिगत जल स्रोतों, और समुद्रों के रूप में पाया जाता है
प्राचीन काल से ही मनुष्य जल का उपयोग विभिन्न कार्यों में करता आ रहा है – जैसे पीने के लिए, सिंचाई के लिए, घरेलू कामों में, उद्योगों में तथा बिजली उत्पादन में। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ विविध भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं, वहाँ जल की उपलब्धता किसी क्षेत्र विशेष की वर्षा और भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करती है। कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त जल संसाधन हैं, तो कुछ क्षेत्र सूखे की चपेट में रहते हैं
समस्या तब उत्पन्न होती है जब जल संसाधनों का अंधाधुंध व असंतुलित दोहन किया जाता है। जनसंख्या वृद्धि, तीव्र शहरीकरण, रहन-सहन में बदलाव, जल के प्रति लापरवाही, पुराने जल स्रोतों का संरक्षण न होना आदि कारणों से जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण जल स्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है। जिससे खेतों की सिंचाई, पेयजल उपलब्धता, तथा औद्योगिक क्रियाओं में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
आज स्थिति यह है कि गाँवों से लेकर शहरों तक, जल संकट तेजी से गहराता जा रहा है। अधिकांश महानगरों में गर्मियों में पानी की भारी किल्लत देखी जाती है। जल की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है। जल प्रदूषण की समस्या बहुत गंभीर होती जा रही है। घरेलू और औद्योगिक कचरे को नदियों में बहा देने से नदियाँ गंदे नालों में तब्दील हो गई हैं। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि जलीय जीवों के जीवन पर भी संकट मंडरा रहा है।
जल संकट का एक बड़ा कारण वर्षा जल का संग्रह न करना है। हर वर्ष मानसून के दौरान भारी मात्रा में पानी बहकर समुद्र में चला जाता है, जबकि यदि उसका संग्रह किया जाए, तो जल की कमी काफी हद तक दूर की जा सकती है। वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) एक प्रभावी उपाय है जिससे जल स्तर को पुनः ऊपर लाया जा सकता है। इसके अलावा पुराने जल स्रोतों जैसे बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि का पुनरुद्धार करना भी आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक जल संग्रह प्रणाली को पुनर्जीवित कर वहां के जल संकट को कम किया जा सकता है।
सरकार द्वारा कई जल संरक्षण योजनाएँ चलाई जा रही हैं जैसे लघु सिंचाई विभाग द्वारा मुख्य मंत्री लघु सिंचाई योजना– ‘जल शक्ति अभियान’, ‘अटल भूजल योजना’, ‘नमामि गंगे catch the rain ’ आदि। इनका उद्देश्य जल स्रोतों का संरक्षण, पुनर्भरण, व जनजागरूकता फैलाना है। लेकिन केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। आम जनता को भी जल संरक्षण के लिए अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
हमें अपने दैनिक जीवन में जल का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। नलों को खुला न छोड़ें, टपकते नलों की मरम्मत करें, बर्तन धोने व नहाने में जरूरत से ज्यादा पानी न बहाएँ, कार धोने में पाइप के बजाय बाल्टी का प्रयोग करें, वर्षा जल को संग्रह करें, पेड़ों को बचाएँ क्योंकि वृक्ष वर्षा लाने में सहायक होते हैं।
वर्तमान समय में जल संरक्षण केवल विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन चुका है। यदि अब भी हम नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियाँ जल के लिए तरसेंगी। जल संकट से निपटना केवल वैज्ञानिक या सरकारी विषय नहीं, बल्कि यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हैनिष्कर्षतः, जल संरक्षण हमारे अस्तित्व की रक्षा से जुड़ा विषय है। यदि हमें धरती पर जीवन बनाए रखना है, तो जल के प्रति सचेत रहना ही होगा। वैज्ञानिक तकनीक, पारंपरिक ज्ञान, सरकार और जनता – सभी को मिलकर जल संकट से निपटना होगा। तभी हम एक सुरक्षित, समृद्ध और जल-सम्पन्न भविष्य की ओर बढ़ सकेंगे।