भूमिगत जल (Ground water) क्या है?

वर्षा के समय जो जल पृथ्वी पर गिरता है, उसका एक बड़ा भाग नदियों, नालों और समुद्रों में बह जाता है। कुछ भाग वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में लौट जाता है और शेष जल भूमि की सतह से नीचे रिसकर धरती के विभिन्न स्तरों में चला जाता है। यह जल धीरे-धीरे मिट्टी, बालू, चट्टानों और परतों से गुजरते हुए नीचे जमा होता है। इस जल को ही भूमिगत जल (Groundwater) कहा जाता है। और शेष जल भूमि की सतह से नीचे रिसकर धरती के विभिन्न स्तरों में चला जाता है। यह जल धीरे-धीरे मिट्टी, बालू, चट्टानों और परतों से गुजरते हुए नीचे जमा होता है। इस जल को ही भूमिगत जल (Groundwater) कहा जाता है। यह जल कुंओं, नलकूपों, हैंडपंपों और बोरवेल्स के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।

भूमिगत जल का महत्व
भूमिगत जल का उपयोग कृषि, पेयजल, उद्योग, निर्माण कार्य, घरेलू उपयोग और पशुपालन जैसी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो लगभग संपूर्ण पेयजल की आवश्यकता भूमिगत जल से ही पूरी होती है। शहरी क्षेत्रों में भी, जहाँ जल आपूर्ति की व्यवस्था सुसंगठित नहीं है, वहाँ लोग नलकूपों या बोरवेल्स के माध्यम से जल प्राप्त करते हैं।

भूमिगत जल के स्रोत

भूमिगत जल का मुख्य स्रोत वर्षा जल ही होता है। वर्षा के समय जो जल भूमि की सतह से नीचे रिसता है, वह चट्टानों की दरारों और मिट्टी की परतों में जाकर जमा हो जाता है। यह जल परतों के बीच इकट्ठा होकर जलभंडार (Aquifer) बनाता है। इन्हीं जलभंडारों से नलकूप और बोरवेल्स जल खींचते हैं। इसके अलावा झीलें, तालाब और नदियाँ भी भूमिगत जल को पुनः पूर्ति करने में सहायक होती हैं।

भूमिगत जल की सीमितता

यद्यपि भूमिगत जल का भंडार विशाल प्रतीत होता है, परंतु यह वास्तव में सीमित और नवीकरणीय संसाधन है। जल का अत्यधिक दोहन, वर्षा की कमी, हरियाली की कटाई, जल संचयन के साधनों का अभाव और शहरीकरण के कारण भूमिगत जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। अनेक क्षेत्रों में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि कुछ बोरवेल्स और नलकूप सूख चुके हैं और जल सैकड़ों फीट नीचे चला गया है।

जल संकट के कारण

  1. अंधाधुंध दोहन – खेती, उद्योग और घरों में अत्यधिक जल का उपयोग भूमिगत जल की गिरावट का प्रमुख कारण है।
  2. वर्षा जल संचयन की कमी – अधिकांश वर्षा जल व्यर्थ बह जाता है, क्योंकि उसे रोकने या संग्रहित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
  3. वनों की कटाई – वृक्ष वर्षा जल को भूमि में सोखने में सहायता करते हैं, उनकी कटाई से यह प्रक्रिया बाधित होती है।
  4. शहरीकरण एवं कंक्रीटीकरण – सड़कों, इमारतों और अन्य निर्माणों के कारण वर्षा जल भूमि में नहीं जा पाता।
  5. जल संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी – लोग जल की महत्ता को नहीं समझते और इसे अनावश्यक रूप से व्यर्थ करते हैं।

जल संरक्षण के उपाय

  1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) – घरों, स्कूलों और कार्यालयों में वर्षा जल को एकत्र कर भूमिगत जल में पुनः भेजा जा सकता है।
  2. जल पुनर्चक्रण (Water Recycling) – घरेलू व औद्योगिक जल को पुनः शोधित कर उपयोग में लाना चाहिए।
  3. सिंचाई में सुधार – ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसे आधुनिक सिंचाई विधियों का प्रयोग कर जल की बचत की जा सकती है।
  4. वृक्षारोपण – अधिकाधिक वृक्ष लगाए जाएं ताकि वर्षा जल भूमि में समाहित हो सके।
  5. जन जागरूकता – लोगों को जल की महत्ता और इसके संरक्षण के तरीकों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।

सरकारी प्रयास

भारत सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारें भी भूमिगत जल के संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ चला रही हैं जैसे – ‘जल शक्ति अभियान’, ‘अटल भूजल योजना’, ‘नमामि गंगे’, Catch the rain, Mukhya mantri Laghu sichai Yojana आदि। इन योजनाओं का उद्देश्य जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देना है।
निष्कर्ष

जल जीवन है, और इसका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है। भूमिगत जल एक अनमोल संसाधन है, जो सीमित है और जिसके पुनर्भरण में वर्षों लग जाते हैं। यदि हम आज भी इसके महत्व को नहीं समझेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को गहरे जल संकट का सामना करना पड़ेगा। अतः जल का विवेकपूर्ण उपयोग करें, संरक्षण करें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।


1. पेयजल हेतु: शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में यह मुख्य स्रोत है।

  1. कृषि क्षेत्र में: सिंचाई हेतु 60% से अधिक कृषि भूमियाँ इसी पर निर्भर हैं।
  2. औद्योगिक उपयोग: अनेक उद्योगों में जल शीतलन, सफाई एवं उत्पादन प्रक्रिया का अंग है।
  3. घरेलू उपयोग: नहाने, धोने, साफ-सफाई, शौचालय आदि।

जल चक्र में भूमिगत जल की भूमिका

वर्षा के जल का एक भाग सीधे समुद्र, नदियों में चला जाता है, कुछ भाग वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में लौटता है और शेष जल मिट्टी में रिसकर भूमिगत जल का हिस्सा बनता है। यह जल पुनः झरनों, कुओं व नदियों के माध्यम से सतह पर आकर जल चक्र को पूर्ण करता है।

भूमिगत जल का महत्व
भूमिगत जल का उपयोग कृषि, पेयजल, उद्योग, निर्माण कार्य, घरेलू उपयोग और पशुपालन जैसी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो लगभग संपूर्ण पेयजल की आवश्यकता भूमिगत जल से ही पूरी होती है। शहरी क्षेत्रों में भी, जहाँ जल आपूर्ति की व्यवस्था सुसंगठित नहीं है, वहाँ लोग नलकूपों या बोरवेल्स के माध्यम से जल प्राप्त करते हैं।

भूमिगत जल के स्रोत

भूमिगत जल का मुख्य स्रोत वर्षा जल ही होता है। वर्षा के समय जो जल भूमि की सतह से नीचे रिसता है, वह चट्टानों की दरारों और मिट्टी की परतों में जाकर जमा हो जाता है। यह जल परतों के बीच इकट्ठा होकर जलभंडार (Aquifer) बनाता है। इन्हीं जलभंडारों से नलकूप और बोरवेल्स जल खींचते हैं। इसके अलावा झीलें, तालाब और नदियाँ भी भूमिगत जल को पुनः पूर्ति करने में सहायक होती हैं।

भूमिगत जल की सीमितता

यद्यपि भूमिगत जल का भंडार विशाल प्रतीत होता है, परंतु यह वास्तव में सीमित और नवीकरणीय संसाधन है। जल का अत्यधिक दोहन, वर्षा की कमी, हरियाली की कटाई, जल संचयन के साधनों का अभाव और शहरीकरण के कारण भूमिगत जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। अनेक क्षेत्रों में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि कुछ बोरवेल्स और नलकूप सूख चुके हैं और जल सैकड़ों फीट नीचे चला गया है।

जल संकट के कारण

  1. अंधाधुंध दोहन – खेती, उद्योग और घरों में अत्यधिक जल का उपयोग भूमिगत जल की गिरावट का प्रमुख कारण है।
  2. वर्षा जल संचयन की कमी – अधिकांश वर्षा जल व्यर्थ बह जाता है, क्योंकि उसे रोकने या संग्रहित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
  3. वनों की कटाई – वृक्ष वर्षा जल को भूमि में सोखने में सहायता करते हैं, उनकी कटाई से यह प्रक्रिया बाधित होती है।
  4. शहरीकरण एवं कंक्रीटीकरण – सड़कों, इमारतों और अन्य निर्माणों के कारण वर्षा जल भूमि में नहीं जा पाता।
  5. जल संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी – लोग जल की महत्ता को नहीं समझते और इसे अनावश्यक रूप से व्यर्थ करते हैं।

जल संरक्षण के उपाय

  1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) – घरों, स्कूलों और कार्यालयों में वर्षा जल को एकत्र कर भूमिगत जल में पुनः भेजा जा सकता है।
  2. जल पुनर्चक्रण (Water Recycling) – घरेलू व औद्योगिक जल को पुनः शोधित कर उपयोग में लाना चाहिए।
  3. सिंचाई में सुधार – ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसे आधुनिक सिंचाई विधियों का प्रयोग कर जल की बचत की जा सकती है।
  4. वृक्षारोपण – अधिकाधिक वृक्ष लगाए जाएं ताकि वर्षा जल भूमि में समाहित हो सके।
  5. जन जागरूकता – लोगों को जल की महत्ता और इसके संरक्षण के तरीकों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।

सरकारी प्रयास

भारत सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारें भी भूमिगत जल के संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ चला रही हैं जैसे – ‘जल शक्ति अभियान’, ‘अटल भूजल योजना’, ‘नमामि गंगे’, आदि। इन योजनाओं का उद्देश्य जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देना है।

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