“एक बूँद की आस”(बुंदेलखंड के एक किसान की व्यथा)
बुंदेलखंड की तपती दोपहर थी। आसमान बादलों से खाली था, ज़मीन पर गर्म हवा तीर की तरह चल रही थी। खेत की मिट्टी की दरारें इतनी गहरी थीं मानो धरती खुद रो रही हो। सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट के बीच एक वृद्ध किसान, Gangadhar, अपने बंजर खेत के किनारे बैठा था। दोनों हाथ सिर पर टिके थे, और नज़रें आसमान की ओर। आँखों में नमी थी, पर वह आँसू नहीं, सूखे की मार से उपजे असहायपन का बोझ था। “हे भगवान! कब बरसेगा ये पानी?” उसने आसमान की ओर देखते हुए धीरे से कहा। तीन साल से खेत ने अनाज नहीं उगला। नहरों में पानी नहीं, तालाब सूखे पड़े हैं, । रामस्वरूप की गाय भूख से मर गई, और उसके बेटे शहर में मज़दूरी करने चले गए। लेकिन रामस्वरूप? वह नहीं गया। “ये धरती मेरी माँ है,” वो अक्सर कहता। “माँ को छोड़ कैसे जाऊं?” पर अब, जब खेत की मिट्टी चटक चुकी थी, जब बीज बोने की भी हिम्मत नहीं बची थी, तब रामस्वरूप की उम्मीद बस एक चीज़ पर टिकी थी — आसमान की ओर। बादल कभी-कभी आते, ठिठकते, और बिना बरसे चले जाते। हर बार उसकी उम्मीद जागती, और फिर टूट जाती। एक दिन, गाँव के बच्चे उसके पास आकर बोले,“दद्दा, इस बार भी बारिश नहीं हुई तो क्या करेंगे?” Gangadhar चुप रहा। उसके पास जवाब नहीं था। फिर उसने धीरे से कहा, कि बुंदेलखंड की चट्टानी ज़मीन में पानी निकालना आसान नहीं है। इसलिए लघु सिंचाई विभाग के माध्यम से बिना किसी खर्च के यह कार्य कराया जा रहा है।” रामस्वरूप के दिल में बरसों बाद पहली बार एक उम्मीद जगी। अगले हफ्ते उसके खेत में सर्वे हुआ, और पंद्रह दिन के भीतर पत्थर काट कर एक गहरा कूप बनकर तैयार हुआ। बूँद-बूँद से हरियाली कूप से जैसे ही पानी निकला, रामस्वरूप की आँखों में आँसू आ गए — पर इस बार खुशी के थे।वह पानी अब खेत में गया, बीज बोए गए, और कुछ ही हफ्तों में उस बंजर ज़मीन पर हरी पत्तियाँ उग आईं। बच्चे खेलते हुए आए और बोले,“दद्दा, इस बार तो अच्छी फसल होगी!” Gangadhar ने उन्हें गले लगाते हुए कहा,“हाँ रे बिटवा, अब मेरे खेत में भी हरियाली लौटेगी… और ये सब उस कूप की वजह से है — जो सरकार ने मेरे लिए बनवाया।” निष्कर्ष: अब भी Gangadhar आसमान की ओर देखता है —पर अब डर के साथ नहीं, उम्मीद के साथ।क्योंकि अब उसे पता है कि अगर एक बूँद ऊपर से न भी गिरे, तो धरती के सीने में अब भी अमृत छुपा है,और सरकार का एक विभाग — लघु सिंचाई विभाग — उन किसानों की पीड़ा को समझता है और राहत पहुँचाता है। रामस्वरूप अब अकेला नहीं है, उसके साथ अब शासन की सोच, योजनाएँ और एक नवजीवन की शुरुआत है।